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दो ग्रहों के योग का प्रतिफल पृथ्वी!

  • Writer: Sci-Nat-Astro Web
    Sci-Nat-Astro Web
  • Apr 9, 2022
  • 3 min read

दो ग्रहों का योग वर्तमान पृथ्वी!


नवीन शोधों से यह उजागर होने लगा है कि पृथ्वी वास्तव में दो ग्रहों के योग का प्रतिफल है। ऐसा दावा है उन अध्ययनकर्ताओं का जो अपने अध्ययन अनुसार इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि पृथ्वी की सतह के नीचे गहराई में किसी प्राचीन ग्रह के कुछ बड़े टुकड़े आज भी उपस्थित हैं।

पृथ्वी की गहराई में स्थित वो धब्बे जिन्हें उग्र ग्रह थिया का भाग बताया जा रहा है।


जायंट इम्पैक्ट परिकल्पना को आधार मानते हुए इन वैज्ञानिकों ने ये दावा किया है कि मंगल ग्रह के आकार के ‘थिया’ नामक उस उग्र ग्रह के हिस्सों की कुछ परतें आज भी गहराई में पृथ्वी के मेंटल संग स्थित हैं जिसका विलय भीमकाय टकराव के पश्चात प्रारंभिक पृथ्वी ‘गाया’ में हो गया था। जानकारों अनुसार भीमकाय टक्कर के पश्चात ‘थिया’ के कुछ भाग ‘गाया’ की संरचना में पूर्ण तौर पर मिश्रित नहीं हो पाए होंगे, इसी कारण यह अब भी अपने उन्ही संरचनात्मक गुणों को संजोए हुए पृथ्वी की गहराई में स्थित हैं।

पश्चिम अफ्रीका और प्रशांत महासागर के नीचे स्थित ब्लॉब्स।


एरिज़ोना स्टेट यूनिवर्सिटी, टेम्पे के शोधकर्ता कियान युआन के अनुसार ‘थिया’ के यह अवशेष अब भी पश्चिम अफ्रीका और प्रशांत महासागर के नीचे दो महाद्वीपों के आकार की चट्टानी परतों के रूप में स्थित हैं। आयतन की दृष्टि (In terms of Volume) में यह माउंट एवरेस्ट की तुलना में लाखों गुणा विशाल हैं।


कियान युआन समेत वैज्ञानिकों के एक समूह का मानना है कि चंद्रमा का निर्माण करने वाले भीमकाय टकराव के पश्चात प्राचीन ग्रह ‘थिया’ के मेंटल में स्थित घने पदार्थ पृथ्वी की सतह के नीचे गहराई तक प्रवेश कर गए थे, इन्हीं पदार्थों को वर्तमान समय में ब्लॉब्स (Blobs) या धब्बों के रूप में विज्ञान जगत जानता है।


इन शोधकर्ताओं के मॉडल अनुसार यदि पृथ्वी के मेंटल की तुलना में 1.5% से 3.5% अधिक घने कुछ तत्व ‘थिया’ में रहे होंगे तो वह प्रारंभिक पृथ्वी यानि ‘गाया’ में पूर्णतः मिश्रित होने से बच गए होंगे और पृथक-पृथक गांठों के रूप में वर्तमान पृथ्वी के क्रोड (Core) के आसपास एकत्रित हो गए होंगे, जैसा की ऊपर दिए चित्रों में देखा जा सकता है।

जायंट इम्पैक्ट


इस शोध ने जहां एक ओर जायंट इम्पैक्ट परिकल्पना को बल प्रदान किया है वहीं नासा द्वारा चंद्रमा पर भेजे गए अपोलो मिशन द्वारा एकत्रित चंद्रमा की चट्टानों के नमूनों के अध्ययन से भी यह सपष्ट हुआ है कि चंद्रमा की ऊपरी सतह और पृथ्वी पर मिलने वाले ऑक्सीजन आइसोटोप्स में तो बहुत अधिक समानता है, परन्तु चंद्रमा की गहराई में मिलने वाले ऑक्सीजन आइसोटोप्स पृथ्वी पर मिलने वाले ऑक्सीजन आइसोटोप्स की तुलना में अधिक भारी हैं। जानकारों का कहना है कि ऐसा अंतर इस तथ्य का प्रमाण है कि चंद्रमा के भीतर भी उग्र ग्रह ‘थिया’ के अंश स्थित हैं जो पूरी तरह से ‘गाया’ से छिटके मलबे में मिश्रित नहीं हो पाए और चंद्रमा के निर्माण के समय उसके भीतरी भाग में खिसक गए।

चंद्रमा से जुटाए गए कुछ चट्टानी नमूने


वैदिक ज्योतिष से संबंधित कई धारणाएं भी जायंट इम्पैक्ट जैसी ही खगोलीय घटना की ओर इंगित करती हैं और ज्योतिष के कई सूत्र भी इसी खगोलीय घटना और इसके कारण से अस्तित्व में आए कारणों व उनके प्रभावों को केन्द्र में रखकर ही रचे गए हैं।

चंद्रमा के निर्माण की प्रक्रिया के समय जायंट इम्पैक्ट के प्रभाव से छिटके मलबे के कारण पृथ्वी के भी शनि जैसे वलय बन गए थे।

वलयधारी ग्रह शनि

प्रकाश रोकते इन्ही वलयों के कारण शनि का संबध ग्रहण से माना जाता है।


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*विषय संबंधित कुछ अन्य जानकारियों के लिए पढ़ें “खगोलीय व्यवस्था ज्योतिष”

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