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आकाश(स्पेस) में होती है ध्वनि!

  • Writer: Sci-Nat-Astro Web
    Sci-Nat-Astro Web
  • Jun 18, 2022
  • 3 min read

Updated: Jun 19, 2022


नासा ने जारी किया ब्लैक होल का नाद

अंतरिक्ष के विषय में जानकारियां देती वो सभी डॉक्यूमेंटरी तो सभी को याद होंगी जिनमें अंतरिक्ष में हुए विस्फोटों को दर्शाते हुए दृश्यों में किसी प्रकार की ध्वनि को नहीं जोड़ा जाता था। ऐसा इसलिए क्योंकि स्पेस यानि आकाश के संबंध में लम्बे समय तक यह धारणा प्रचलित रही कि निर्वात यानि वैक्यूम होने के कारण आकाश में ध्वनि तरंगों के प्रसार के लिए कोई माध्यम नहीं होता।


लेकिन कुछ समय पूर्व नासा ने पर्सियस आकाशगंगा क्लस्टर के कृष्ण विवर से आने वाली ध्वनि को स्पेस डेटा सोनिफिकेशन तकनीक के माध्यम से मानव कर्णों के सुनने योग्य बनाकर जारी करके यह सपष्ट कर दिया है कि अंतरिक्ष में ध्वनियां न होने की धारणा को पूरी तरह से सही भी नहीं ठहराया जा सकता। ऐसा इसलिए क्योंकि स्पेस में स्थित आकाशगंगा समूहों में पर्याप्त गैस मौजूद रहती है जो ध्वनि तरंगों के प्रसार का माध्यम बनती है।इसलिए जानकार यह कहने लगे हैं कि ऐसी धारणा बना लेना कि अंतरिक्ष में कोई नाद या ध्वनि नहीं होती एक भारी चूक होगी।



रेडियो और गुरुत्वाकर्षण तरंगे

स्पेस में रेडियो व गुरुत्वाकर्षण तरंगें भी होती हैं जो कि निर्वात (वैक्यूम) स्थान में भी भ्रमण कर सकती हैं। हालांकि दैहिक स्तर पर तो मनुष्यों के पास इन्हें सामान्य परिस्थितियों में सुन पाने की क्षमता नहीं है परन्तु विज्ञान के माध्यम से मनुष्यों ने इन्हें सुनने योग्य बना लेने की तकनीक विकसित कर ली है। इसलिए ब्रह्माण्ड को सुन पाना अब साधारण मानव के लिए भी संभव हो पा रहा है।




नाद से हुई है सृष्टि की उत्पत्ति

यदि सूक्ष्मता से विचारें तो वर्तमान समय के अंतरिक्ष अनुसंधान केन्द्रों के द्वारा उजागर किए जा रहे ये सभी तथ्य वास्तव में प्राचीन ऋषि-मुनियों के दृष्टिकोण की ही प्रमाणिकता सिद्ध कर रहे हैं।


वैदिक कालीन ऋषियों ने तो अपने अध्ययनों एवं कुण्डलिनीय अनुभवों के आधार पर बहुत पहले ही यह उद्घोष कर दिया था कि आकाश में ध्वनियां होती हैं। उनके अनुसार तो इस सम्पूर्ण सृष्टि की उत्पत्ति भी नाद से ही हुई बतलाई गई है, साथ ही उन्होंने यह भी बताया है कि ब्रह्माण्ड के जड़-चेतन में नाद ही व्याप्त है, इसलिए इसे ‘नादब्रह्म’ भी कहा गया है।



प्राचीन प्रतीक, ज्योतिषीय धारणाएं और नादयोग

प्राचीन समय से ही बहुत से वाद्य यंत्रों को आकाश में उत्पन्न होने वाले नाद या संगीत का प्रतीक मानकर महत्व दिया जाता रहा है।


ज्योतिष में भी बहुत सी प्रचलित धारणाओं जैसे-

1. आकाश तत्व का विशुद्धि चक्र, बुध ग्रह, वाणी और वीणा से संबंध।

2. राहु का आकाश तत्व पर प्रभाव।

3. केतु का सुनने की क्षमताओं से संबंध।

4. श्री गणेश और उनके वाहन मूषक का केतु के सकारात्मक प्रभावों से संबंध।

5. कुत्तों का केतु से संबंध।

6. सर्प का राहु-केतु से संबंध इत्यादि

इन सभी का आधार भी आकाश में उत्पन्न होने वाली ध्वनि तरंगों और अन्य तरंगों के अध्ययन और अनुभूतियाँ ही हैं।


वहीं नाद योग की साधना में तो सपष्ट माना गया है कि आकाश में असंख्य घटनाक्रमों के कम्पन चलते रहते हैं, इसलिए जो घट चुका है या घटने वाला है उसका स्पंदन विभिन्न तरंगों के रूप में आकाश में भ्रमण करता रहता है। नादयोग की एकाग्रता का सटीक अभ्यास होने पर इन स्पंदनों इन नादों का आभास प्राप्त किया जा सकता है, इसे एक असामान्य सिद्धि बताया गया है।



*कुछ संबंधित तथ्य

  • हाथी इन्फ्रोसोनिक ध्वनि के माध्यम से संवाद करते हैं। वह ध्वनि तरंगें जिनकी आवृति मनुष्यों के सुनने की क्षमता से बहुत कम होती हैं। श्री गणेश की छवि पर केतु के सकारात्मक प्रभाव बढ़ाने के लिए इस कारण से भी ध्यान किया जाता है।

  • भूमि के नीचे रहने वाले जीव जैसे मूषक, सर्प भूकंपीय तरंगों को सुन सकते हैं।

  • कुते भी पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र का आभास कर सकते हैं इसलिए इनका संबंध शनि व केतु से माना गया है।

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*कुछ और संबंधित जानकारियों के लिए पढ़े ‘खगोलिए व्यवस्था ज्योतिष



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