जलवायु आपातकाल (CLIMATE EMERGENCY)
- Sci-Nat-Astro Web
- Jul 30, 2021
- 7 min read
Updated: Aug 26, 2021
पृथ्वी के अतिरिक्त एकमात्र “केप्लर−442बी”

वैज्ञानिकों का कहना है कि “केप्लर−442बी” ही हमारी सम्पूर्ण आकाशगंगा में केवल एकमात्र पृथ्वी जैसा ग्रह हो सकता है। असल मेें प्रकाश संश्लेषण पर केंद्रित एक नवीन विश्लेषण से यह तथ्य प्रकाश में आ रहा है कि ‘संभावित रहने योग्य ग्रहों’ पर पृथ्वी जैसी स्थितियां पूर्वानुमानों के विपरीत अत्यंत दुर्लभ हो सकती हैं। इससे पूर्व यह अनुमान लगाए जाते रहे हैं कि हमारी आकाशगंगा मेें लगभग 300 मिलियन ऐसे ग्रह हो सकते हैैं जिन पर पृथ्वी समान स्थितियाँ हों और उनपर जीवन संभव हो। परन्तु इस नवीन विश्लेषण ने पृथ्वी के महत्व को और अधिक बढ़़ा दिया है और इसका सीधा-सीधा अर्थ केेवल इतना सा है कि यदि पृथ्वी की जलवायु निकट भविष्य मेें रहने योग्य न रही तो ‘जीवन विशेषकर मानव जीवन’ के लिए ऐसी उपयुक्त और इतने आनंद से भरी परिस्थितियों को आकाशगंगा में खोज पाना अत्यंत जटिल हो जाएगा और बिना पृथ्वी के जीवनयात्रा कितनी कठिनाइयों भरी होगी वर्तमान समय मेें इसकी कल्पना कर पाना कोई उलझन भरा कार्य नहीं है, क्योंकि जिस प्रकार की परिस्थितियों का निर्माण पिछले कुछ समय में मनुष्यों के विवेकहीन हस्तक्षेपों के कारण पृथ्वी पर हुआ है, उनसे यह तो सपष्ट होने लगा है कि आने वाले समय में शायद ही पृथ्वी पर रहने योग्य जलवायु बच पाएगी और अपने निश्चित समय से पहले ही धरती जीवन के लिए प्रतिकूल बनती जाएगी। इन्हीं कारणों से कई वैज्ञानिकों ने वर्तमान परिस्थितियों को जलवायु आपातकाल कहना आरम्भ कर दिया है। साथ ही यूरोप समेेत न्यूज़ीलैंड ने तो अपने यहां जलवायु आपातकाल घोषित भी कर दिया है। Video Link: Just one like Earth in entire Galaxy
अंतिम चेतावनी

गहन शोधों, मंथनों और चर्चाओं के पश्चात विश्वभर के जलवायु विशेषज्ञ इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि धरती के बढ़ते तापमान के कारण परिस्थितियाँ बिगड़ती चली जा रही हैं और इस समय सभी एक आपातकाल जैसी स्थिति में हैं, इसे वैज्ञानिकों द्वारा जलवायु आपातकाल भी कहा जा रहा है। जर्मनी, बेल्जियम, चीन और नीदरलैंड्स में बाढ़, कनाडा समेत अमेरिका में तपती लू और भारत में बाढ़ एवं वर्षा चक्र में आए परिवर्तनों से यह सपष्ट है कि आने वाला समय और भी त्रासदियों भरा रहने वाला है। वैज्ञानिकों द्वारा हाल ही में घटी इन त्रासदियों को प्रकृति की ‘अंतिम चेतावनी’ के रूप में देखा जा रहा है। जानकारों का मानना है कि यदि अब भी ‘ग्लोबल वार्मिंग’ को रोकने के लिए विश्वभर की सरकारों और विकसित राष्ट्रों द्वारा गम्भीर प्रयास न किए गए तो जलवायु परिवर्तन के परिणाम अत्यंत विनाशकारी सिद्ध होंगें। Video Link: Europe Floods
ग्रीनहाउस इफेक्ट (हरितगृह प्रभाव)

पृथ्वी के बढ़ते तापमान में ग्रीनहाउस गैसों की भूमिका से तो सभी परिचित हैं और जानते ही हैं कि जैसे-जैसे वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा बढ़ रही है, वैसे वैसे इन गैसों का मोटा होता आवरण पृथ्वी के वातावरण में आवश्यकता से अधिक ऊष्मा रोक रहा है। इसी कारण धरती का पारा बढ़ रहा है।

यदि वातावरण में स्थित 6 प्रमुख ग्रीनहाउस गैसों को देखें तो उनमें कार्बनडाईऑक्साइड, मिथेन, नाइट्रस आक्साइड, हाइड्रोफ्लूरोकार्बन, परफ्लूरोकार्बन और सल्फर हेक्साफ्लोराइड शामिल हैं। वैसे तो वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों को प्रकृति का चक्र साफ करता रहता है, परन्तु औद्योगिक क्रांति के पश्चात से ही मानवों ने अत्यधिक मात्रा में जीवाश्म ईंधन एवं अन्य स्तोत्रों द्वारा ग्रीनहाउस गैसों का धरती के वातावरण में उत्सर्जन किया है और इन अतिरिक्त ग्रीनहाउस गैसों की सफाई करना जटिल कार्य है।
कार्बन उत्सर्जन के आंकड़ों के अनुसार, धूर्त चीन दुनिया में कार्बन डाइऑक्साइड का सबसे बड़ा उत्सर्जक है। चीन प्रति वर्ष लगभग 10,641 मिलियन मीट्रिक टन का उत्सर्जन करता है जो कि दुनिया के कुल प्रदूषण का 30% है।

वहीं संयुक्त राज्य अमेरिका प्रति वर्ष 5,414 मिलियन मीट्रिक टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन के साथ दूसरे स्थान पर है। यह दुनिया के कुल कार्बन उत्पादन का 15% उत्सर्जित करता है।

Comparatively Low CO2 levels due to Covid Pandemic
इसके साथ भारत प्रति वर्ष 2,274 मिलियन मीट्रिक टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन का उत्सर्जन करता है। भारत दुनिया के कुल कार्बन उत्पादन का केवल 7% कार्बन उत्सर्जित करता है।हालांकि, सभी देश अपने-अपने स्तर पर कार्बन उत्सर्जन में कमी को लेकर कुछ प्रयास कर रहे हैं परन्तु ये प्रयास पर्याप्त नहीं है और यह वर्तमान परिस्थितियों से सपष्ट हो चुका है।

Geo-Engineering not a solution but a problem
अब ऐसी परिस्तिथियों में मानव द्वारा वातावरण में उत्सर्जित अतिरिक्त कार्बन डाईऑक्साइड व अन्य ग्रीनहाउस गैसों को साफ करना दिन-प्रतिदिन जटिल बनता जा रहा है और विज्ञान के पास भी अभी तक कोई ऐसा आधुनिक विकल्प नहीं है जिसके प्रयोग से प्रकृति के चक्र से छेड़छाड़ किए बिना पृथ्वी की जलवायु को स्वच्छ किया जा सके। इसलिए यदि पृथ्वी से छेड़छाड़ कर यानि जियो-इंजीनियरिंग के माध्यम से भी इस परिस्थिति को नियंत्रित करने के प्रयास होते हैं तो भी प्रकृति का चक्र प्रभावित होगा और साथ ही अत्यधिक गम्भीर परिवर्तन पृथ्वी पर घटेंगे, जो स्वभाव से विनाशकारी ही होंगे। कई जानकारों का ऐसा मत है कि जलवायु हैकिंग समाधान नहीं अपितु बड़ी समस्याओं को आमंत्रण है। Video Link: Geoengineering a Horrible Idea

Pros and cons of Geo-Engineering or Climate Hacking
अरबपतियों की विक्षिप्तता और अल्पज्ञान
वर्जिन समूह के संस्थापक रिचर्ड ब्रैनसन और एमोजॉन के पूर्व सीईओ जेफ बेजोस की दस मिनट की अंतरिक्ष यात्राओं के साथ ही अरबपतियों के बीच पर्यटकों को अंतरिक्ष में ले जाने की व्यवसायिक होड़ तेज हो गई है और इससे भी तेज होने वाली है जलवायु परिवर्तन की गति। महत्वकांक्षा, अत्यधिक धन कमाने की लालसा और विक्षिप्तताओं से भरे व्यवसायिक अंतरिक्ष यात्राओं के इसी क्षेत्र में एक कदम और आगे बढ़ते हुए एलन मस्क की कम्पनी स्पेसएक्स 2021 के अंत तक अपने क्रू ड्रैगन कैप्सूल के साथ चार से पांच दिन की कक्षीय यात्रा करवाने की तैयारी में जुटी हुई है।

विशेषज्ञों अनुसार एक अंतरिक्ष उड़ान से होने वाला कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जन एक यात्री की लंबी दूरी की हवाई यात्रा की तुलना में 50 से 100 गुना अधिक होगा जिसे वायुमण्डल से हटाना बहुत कठिन हो जाएगा। उदाहरण के तौर पर 11 जुलाई को वर्जिन गैलेक्टिक स्पेस के मालिक रिचर्ड ब्रैनसन की फ्लाइट को ही देख लें। इस 160 किलोमीटर की एक यात्रा में अंटलांटिक पार की आने-जाने की पूरी हवाई यात्रा का ईंधन लगा (लंदन से न्यूयॉर्क की हवाई यात्रा 1.24 मेट्रिक टन का कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित करती है)। एक अन्य गणना अनुसार डेढ़ घंटे की अंतरिक्ष यात्रा की उड़ान उतना ही प्रदूषण फैलाती है जितना एक औसत कार 4,800 किलोमीटर चलने पर फैलाती है। यही कारण है कि विशेषज्ञों के अनुसार अंतरिक्ष यात्रा के व्यवसायीकरण को वर्तमान समय में अच्छा विचार नहीं माना जा रहा है, परन्तु ये सब तथ्य भी इन अरबपतियों के मस्तिष्क में पनप रहे इन विकारों का उपचार करने में असमर्थ हैं।
👉नोट: कुछेक विमानों🚀 में हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के ईंधन का उपयोग भी होता है केरोसीन या अन्य ईंधनों का नहीं। परन्तु हाइड्रोजन के निर्माण के समय ही बहुत मात्रा में कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन हो जाता है। इसलिए यह युक्ति भी कार्बन उत्सर्जन रोकने में उतनी सहायक नहीं है।
ग्रहों के प्रभाव और कार्बन फुटप्रिंट

किसी एक संस्था, व्यक्ति या उत्पाद द्वारा किए गए कुल कार्बन उत्सर्जन को कार्बन फुटप्रिंट कहते हैं। कार्बन फुटप्रिंट किसी भी इकाई, व्यक्ति या उत्पाद के द्वारा कुल कार्बन उत्सर्जन को प्रदर्शित करता है। कार्बन डाइऑक्साइड जैसी ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के आधार पर किसी व्यक्ति, संगठन या वस्तु के कार्बन फुटप्रिंट का मूल्यांकन किया जा सकता है। लगभग हर काम जो मनुष्य करते हैं जैसे हमारे द्वारा उपयोग किए जाने वाले कोई भी उपकरण, हमारी आदतें, कपड़े और भोजन आदि सहित सभी से कुछ न कुछ मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) उत्पन्न होता है जो कार्बन फुटप्रिंट को बढ़ावा देता है। एक दिन, महीने या वर्ष में हमारे द्वारा उत्पादित कार्बन डाइऑक्साइड ही कार्बन फुटप्रिंट है।

अब यहां ध्यान देने योग्य तथ्य यह भी है कि ज्योतिषीय धारणाओं अनुसार मनुष्य का स्वभाव, उसकी दिनचर्या, रहन-सहन, खान-पान, कार्यक्षेत्र यह सभी ग्रहों द्वारा निर्मित कारणों के ही प्रभाव हैं। अन्य शब्दों में व्यक्त करें तो ज्योतिष के रचयिता इस तथ्य से भलीभांति परिचित थे कि प्रत्येक मनुष्य का जीवन प्रतिक्षण इस खगोलीय व्यवस्था के ही प्रभाव में है। साथ ही वे ये भी जान चुके थे कि भोग-विलास के स्वामी कहे जाने वाले ग्रह शुक्र के प्रभाव से प्रभावित व्यक्ति के पाप ग्रह शनि,राहु-केतु और क्रूर ग्रह सूर्य व मंगल ऐसे कारणों को निर्मित कर सकते हैं जिनके परिणाम घातक हो सकते हैं और यही हो भी रहा है। वास्तव में ज्योतिष अनुसार राहु का प्रभाव बृहस्पति की शुभता को कम करता है जो ज्ञान और विवेक के अभाव का कारण बनता है और बुद्धि में विष घोल उसे भ्रष्ट कर देता है। ऐसा ही कुछ इस युग में देखा जा सकता है धुंआ फैलाने वाले यंत्रों एवं उपकरणों का प्रयोग इस युग में बढ़ा है। इन सभी का संबंध शनि एवं उसके दूतों यानि राहु-केतु से है। इन सभी मशीनों का अविवेकी प्रयोग ग्रीनहाउस गैसों व विषैले तत्वों का उत्सर्जन कर वायु को प्रदूषित कर मानव की बौद्धिक क्षमताओं को क्षीण कर रहा है। साथ ही घटता ऑक्सीजन स्तर बुद्धि को क्षति पंहुचने का कारण बन रहा है, यह बुध की अशुभता का लक्षण है। यहां चकित करने वाला तथ्य यह भी है कि वायु तत्व का संबंध शुक्र ग्रह से है और खगोलशास्त्र अनुसार शुक्र ग्रह के वातावरण में कार्बन डाईऑक्साइड अधिक है। अर्थात यह कार्बन उत्सर्जन मानवता पर बढ़ते भोग-विलास यानि शुक्र के प्रभाव को भी दर्शाता है। इसी प्रकार कटते वन, लुप्त होती प्रजातियां मनुष्य के द्वारा की जा रही हिंसा को दर्शाती हैं। इस हिंसा का संबंध मंगल के नकारात्मक प्रभावों से है और मंगल आज एक उजाड़ ग्रह है। खगोलशास्त्र अनुसार यह भी कभी जीवन योग्य रहा होगा। साथ ही सूर्य का बढ़ता ताप और धरती का बिगड़ता ऋतु-चक्र शनि के न्याय और सूर्य के क्रूर स्वभाव को दर्शा रहा है। इन सबसे यह सपष्ट हो रहा है कि मनुष्य ग्रहों के नकारात्मक प्रभावों से न तो ऊपर उठ पा रहा है और न ही अपने विवेकशाली कर्मों से उनकी शुभता बढ़ा पा रहा है। वहीं यदि इन अरबपतियों जैसे गेट्स, मस्क, बेजोस, ब्रैनसन इत्यादि की जन्म कुंडली को यदि टटोला जाए तो उनमें भोग-विलास सहित काम वासना के लक्षण देखे जा सकते हैं यानि अनुमान लगाया जा सकता है कि इनके कार्बन फुटप्रिंट का स्तर कितना भयावह है। इसीलिए ज्ञान एवं अन्वेषण संबंधी अंतरिक्ष यात्राएं तो उचित हैं परन्तु पर्यटन के लिए की जाने वाली अंतरिक्ष यात्राएं वायुमण्डल के लिए घातक सिद्ध होने वाली हैं।
इससे ये तो साफ है कि इस आपातकाल में मनुष्यों के पास वर्तमान समय में स्वयं को सकारात्मक रूप से रूपांतरित करने के अतिरिक्त कोई अन्य विकल्प नहीं है। वैसे भी पृथ्वी को उजाड़ कर अंतरिक्ष में अन्य उजाड़ ग्रहों या पिण्डों को बसने योग्य बनाना कोई समझदारी भरा कार्य नहीं है। पृथ्वी जैसा आनंदमयी और सरल जीवन वर्तमान में कहीं और संभव नहीं है। इसलिए इस समस्या का ज्योतिषीय समाधान तो केवल इतना ही है कि सभी पृथ्वी के महत्व को समझ इसके संरक्षण के लिए और स्वयं के उद्धार के लिए अपने आप को बदलना आरम्भ करें। क्योंकि जब सभी के ग्रहों की दशा सुधारेगी यानि सबकी सोच व आचरण में बदलाव होगा तो ही पृथ्वी की दशा में सुधार भी सम्भव होगा। साथ ही जब स्वस्थ पृथ्वी जैसा सम्पन्न केन्द्र उपलब्ध रहेगा तो मनुष्य के लिए अंतरिक्ष में लम्बी दूरी तय कर पाना भी थोड़़ा सरल हो जाएगा। Video: जलवायु आपातकाल (Climate Emergency) set video quality to 360P in settings
*विषय संबंधित कुछ अन्य जानकारी पुस्तक खगोलीय व्यवस्था ज्योतिष में भी उपलब्ध। https://www.cosmicinteractions.com/ OR https://play.google.com/store/books/details?id=CyEDEAAAQBAJ
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